वैसाखी
१३ अप्रैल को पूरे पंजाब में और पंजाब के बहार जहाँ भी पंजाबी रहते हैं वैसाखी पर्व को पूरे धूम धाम से मनाते हैं । स्कूलों में पड़ने वाले बच्चे और कॉलेजों में पड़ने वाले नौजवान स्कूल कॉलेजों में भंगड़ा, गिद्धा प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर ख़ुशी मनाते हैं। गुरुद्वारों में गुरुपर्व मनाये जाते हैं। शबील गुरु के लंगर लगाए जाते हैं। संगत गुरुद्वारों में गुरु ग्रन्थ साहिब के सामने माथा टेकती हैं , सरबत के भले की अरदास की जाती है। सिख प्रचारक सिख इतिहास के बारे में संगत को जानकारी देते हैं। इसके अलावा मीडिया इस दिन को किसानों की फसल पकने की ख़ुशी में मनाये जाने वाला त्यौहार बताती है। पूरे भारत में अलग अलग नाम से इस पर्व को मनाया जाता है।
सिख इतिहास में वैसाखी का महत्त्व इसलिए है क्यूंकि इस दिन सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिन सिंह साहिब महाराज ने इस दिन पांच प्यारों को अमृत छकाकर अपने नाम के साथ सिंह जोड़ने की प्रथा आरम्भ की और महिलाओं के नाम के साथ कौर जोड़ने की। गुरु साहिब ने इस दिन खालसा पंथ की शुरुआत की थी। तांकि हिन्दू धर्म की मुगलों से होने वाले अत्याचार का सामना किया जाए और हर अमृतधारी सिख को केश , कंघा, कड़ा , कछैरा और कृपाण धारण करने के निर्देश दिए और इन्हें गुरु की फ़ौज के नाम इ सम्बोधित किया
सिख समाज की स्थापना ही हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए किया गया है। सभी समाज का आदर, सम्मान का प्रतीक स्वर्ण मंदिर साहिब गुरुद्वारे में चार दरवाजे रखे गए तांकि ब्राह्मण , क्षत्रिये , वैश्य , शूद्र समाज में समानता सबको नजर आये।