मौसम
साल में मुख्यतः तीन-चार मौसम होते हैं। मार्च से जून तक गर्मी का , जुलाई से अक्टूबर तक बरसात का , नवंबर से फरवरी सर्दी का मौसम , इनके अंतर्गत बसंत , पतझड़ का मौसम भी हमें देखने को मिलता है। बरसात से पहले पेड़ पत्तियां सूख जाते हैं , मगर यही पेड़ पौधे बरसात में हरे भरे हो जाते हैं। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली हो जाती है। नदी , तालाब , कुएं , पानी से भर जाते हैं और अगले साल तक सभी प्राणियों के लिए पानी उपलब्ध कराते हैं। किसान भी मौसम पर आधारित फसल उगता है। ।
मगर कभी कभी मौसम का अनुमान गलत भी हो जाता है। जैसे इस साल ही पूरे देश में बरसात हो रही है , किसानों की फसल पककर , कटकर खेतों में पड़ी थी कि ट्रेक्टर में मंडी तक ले जाएंगे या व्यापारी , आढ़तिया ही खेतों में आकर फसल देखकर सौदा कर लेगा। मगर यह सब होता , इससे पहले ही मौसम ने अपना रौद्र रूप दिखा दिया बरसात हो गयी। किसानो की फसल बर्बाद हो गयी।
पहले तो किसानी अब वैसे ही अब फायदे का सौदा नहीं रहा , ऊपर से मौसम की मार। किसान करे तो करे क्या करे ? राज्य सरकारों कि अनुमान कि अनुसार नुक्सान कि लिए सहायता कर रही है , लेकिन क्या यह मदत पर्याप्त है ? सरकारों मदत कि लिए और आगे आना चाहिए। इसके अलावा सरकार मदत कर सकती है फसलों कि रोटेशन में , सारी फसलों पे एम् इस पी देने का फैसला , छोटे कर्जदारों से छुटकारा और काम पानी की ज़रूरत वाली फसलें। इसके अलावा किसानों को वैज्ञानिक तरीके से फैसले पैदा करने से सहायता देना बहुत ही मदतगार साबित होगा।